Friday 20 February 2009

रूद्राष्टकं

नमामिशमीशान् निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं .
निजं निर्गुनं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् .

निराकारमोंकारमूलं तुरियं गिरा ज्ञान गोतितमीशं गिरीशम् .
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोहम् .

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभिरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् .
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कन्ठे भुजन्गा .

चलत् कुन्डलम भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकन्ठं दयालम् .
मृगाधीशचर्माम्बरं मुन्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि .

प्रचन्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं अखन्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् .
त्रयः शूल निर्मुलनं शुलपाणिं भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् .

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि
चिदानन्द संदोहमोहापहारि प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि .

यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तिहलोके परे वा नरानम् .
तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूतादिवासम् .

जानामि योगं जपं नैव पूजा नतोअहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् .
ज़रा जन्म दुखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपननमामिश शम्भो

कुछ आश्रमों में इसका पाठ मौनवेला मंत्र के रूप में होता है

No comments:

Post a Comment