Thursday 3 December 2009

जन-गण-मन

जन-गण-मन अधिनायक, जय हे
भारत-भाग्‍य-विधाता,
पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा,
द्रविड़-उत्‍कल बंग,
विन्‍ध्‍य-हिमाचल-यमुना गंगा,
उच्‍छल-जलधि-तरंग,
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय गाथा,
जन-गण-मंगल दायक जय हे
भारत-भाग्‍य-विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।


यह राष्ट्रगान सम्मलेन में प्रत्येक शनिवार को गाया जाता है.

Tuesday 1 December 2009

शारदा स्तुति

या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिदेवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापिणीम्
वीणापुस्तकधारिणीं भयदां जाद्यान्धाकारापहाम्

हस्ते स्फटिकमालिकां विद्धतीं पद्मासनेसंस्थिता
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां
शारदां । ।

यह कुछ आश्रमों का मौनवेला मंत्र है।

Sunday 22 February 2009

शिवमानसपूजा

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम्
जातीचंपकविल्बपत्ररचितं पुष्पं धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृद्यताम्।

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो
तवाराधानम्

(शिवमानसपूजा के ये दो श्लोक १५/११/०३ एवं १५/११/०४ को विद्यालय दिवस के अवसर पर मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किए गए थे।

Friday 20 February 2009

रूद्राष्टकं

नमामिशमीशान् निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं .
निजं निर्गुनं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् .

निराकारमोंकारमूलं तुरियं गिरा ज्ञान गोतितमीशं गिरीशम् .
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोहम् .

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभिरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् .
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कन्ठे भुजन्गा .

चलत् कुन्डलम भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकन्ठं दयालम् .
मृगाधीशचर्माम्बरं मुन्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि .

प्रचन्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं अखन्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् .
त्रयः शूल निर्मुलनं शुलपाणिं भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् .

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि
चिदानन्द संदोहमोहापहारि प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि .

यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तिहलोके परे वा नरानम् .
तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूतादिवासम् .

जानामि योगं जपं नैव पूजा नतोअहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् .
ज़रा जन्म दुखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपननमामिश शम्भो

कुछ आश्रमों में इसका पाठ मौनवेला मंत्र के रूप में होता है

Saturday 7 February 2009

आध्यात्मिक मिलन

(यह कविता श्री महेश नारायण सक्सेना जी के द्वारा लिखी गई है.)
रागिनी हूँ मैं तुम्हारे कंठ की,
गूँजती झंकार बन जो विश्व में।
कल्पना हूँ मैं तुम्हारे स्वप्न की,
हो रही साकार सारी सृष्टि में।

भोर की लाली तुम्हारी मैं बनूँ,
रात के गहरे तिमिर की चेतना।
सूर्य की हूँ चिलचिलाती धूप तो,
चाँद की मैं चमचमाती ज्योत्सना।

सुप्त हो आलोक के अगर तुम,
मैं तुम्हें साकार करती दीप में।
तुम बनो दीपक, तुम्हारी लौ बनूँ,
ताप भरती मैं तुम्हारी ज्योति में।

तुम ह्रदय तो मैं तुम्हारी भावना,
वेदना तुम, मैं तुम्हारी हूक हूँ।
तुम बनो ऋतुराज तो मैं कोकिला,
कोकिला तुम, मैं तुम्हारी कूक हूँ।

खोजती फिरती बयार बसंत की,
प्यार प्रिय का प्रकृति के श्रृंगार में।
मुखर होते ये मदिर स्वर कौन-से,
प्रणय पीड़ित भ्रमर के गुंजार में।

साज कर अभिसार आज वसुंधरा,
हार अम्बर के गले में डालती।
भाव के वह टिमटिमाते दीप ले,
मौन प्रियतम की उतारे आरती।

सोचती हूँ मैं तुम्हें खोजूँ कहाँ,
सिन्धु तल में या गगन के गर्भ में।
वन-विजन हिमश्रृंग के एकांत में,
कर्म झंझा क्रांति के सन्दर्भ में।

बेबसों की आह में खोजूँ तुम्हें,
या शहीदों की चिता की आग में।
क्या अभागिन के रुदन के राग में,
या सुहागिन की सिन्दूरी माँग में।

छंद समझो तुम मुझे निज गीत का,
लय सम्हालूँ मैं तुम्हारे गान की।
स्थूल की सरगम मिली जो सूक्ष्म से,
सम मिली सम से अमर संगीत की।

कौन तुम मेरे, तुम्हारी कौन मैं,
यह अधूरा प्रश्न ही रह जायेगा।
मैं वही जो तुम कहो तो हानि क्या,
प्रश्न ही उत्तर कभी बन जाएगा।

Saturday 17 January 2009

SCHOOL SONG

Hail! Hail! Netarhat
You are our great school
We like you most
we love you

Sun shines on you
rain pours on you
As if comes god's grace
For giving us solace
And how are we inspired
By the singing of the bird
By the ringing sound coming
from the grazing herd

Our hands want to work
Our legs want to climb
We learn to live together
We love to live together
You have infused our culture
In our minds and heart together
We are prepared to die together
For our mother country dear

Monday 12 January 2009

विद्यालय गान ........(सम्पूर्ण)


वन्दे! वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट सदा,
वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट।

धन्य महाप्रांगण यह विंध्य प्रकृति क्रीड़ा का;
वन मे वनपशुओं का विचरण स्वच्छन्द यहाँ;
विहगों से कंठ मिला गाते नवगान सदा,
वन्दे! वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट सदा।

उषा के साथ जगें,प्रतिदिन मंगलमय हो;
कार्य पूर्ण प्रतिपल हो,ज्ञान वृद्धि जनहित हो;
अंतरतर का मधुमय गाये संगीत सदा,
वन्दे! वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट सदा।

तन मन जन प्राण मिला,नवयुग से नवगति ले,
संग पवन मेघ गगन,संग सूर्य चाँद संग;
तारे ग्रह चरण मिला,चलते नवचाल सदा,
वन्दे! वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट सदा।

साधक हैं समता के,सत्य न्याय करुणा के,
हिन्द प्रेम सम्बल है,विश्व प्रेम साध्य बना;
जन-जन मे ज्योति जगे,सत चित् आनन्द सदा,
वन्दे! वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट सदा।

पायें वरदान कि हों अंकुर तरु मे परिणत,
रस ले फल-फूलों से,स्वस्थ बने मानवता;
'शिव'हो कल्याण सखा,गूँजे जयकार सदा,
वन्दे! वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट सदा।
वन्दे हे सुन्दर मम सखा नेतरहाट।

Sunday 11 January 2009

उद्देश्य और सफलता का सातत्य

उद्देश्य अपने आप में काफी बड़ा अर्थ रखता है उद्देश्य को प्रायः उकृष्ट ही माना जाता है और उद्देश्य की सफलता अपना अर्थ रखती है- उत्कृष्ट की प्राप्ति जो वांछित लक्ष्य की प्राप्ति ही है नेतरहाट विद्यालय की स्थापना के पीछे काफी उद्देश्य अथवा निर्धन और मेधावी छात्रों को एक ऐसा वातावरण उपलब्ध करना है, जहाँ वे अपना सर्वांगीण विकास कर सकें आज जब नेतरहाट विद्यालय अपने स्वर्ण जयन्ती वर्ष में है तो हमारे लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि हम स्वतः अपना मूल्यांकन करें और विवेचना करें कि क्या हम अपने उद्देश्यों में सफल हो पाये हैं छात्र किसी भी विद्यालय की आत्मा होते हैं किसी भी विद्यालय की श्रेष्ठता, उसका महत्त्व, उसकी कीर्तिपताका उसके छात्रों के प्रदर्शन के बल पर ही टिकी होती है 31 अगस्त,2004 को विद्यालय दौरे पर आए महामहिम राज्यपाल श्री वेदप्रकाश मारवाह ने अपने संबोधन में कहा था-"नेतरहाट विद्यालय यदि जगह बनाएगा तो अपने छात्रों के साथ ही वे ही इसकी यशोगाथा के वाहक होंगे" तो अभी का यह अवसर उनकी इस बात की कसौटी पर छात्रों, पूर्ववर्त्ती छात्रों की सफलताओं को आंकने की प्रेरणा देता है कि विद्यालय अपने उद्देश्यों में कितना सफल हो पाया है यों तो ऐसे पूर्ववर्त्ती छात्रों की सूची काफी लम्बी है, जिन्होनें अपने जीवन में विभिन्न उंचाईयों को छुआ इस लघु निबंध के अंतर्गत उन सभी का यहाँ उल्लेख कर पाना लाख चाहने के बावजूद सम्भव नहीं है उपलब्धियों की सूची इतनी लम्बी है कि उनसे एक विशिष्ट पुस्तिका निकाली जा सकती है स्थापनाकाल से हमारा विद्यालय पूर्वनिर्देशित उद्देश्यों को यथार्थ के रूप में प्रस्तुत कर पाने में सक्षम रहा है स्थापनाकाल की परिणाम प्राप्ति से ही कई छात्र इंजीनियर एवं डॉक्टर रहे और अखिल भारतीय सेवाओं में भी छात्र गएयह परम्परा आज भी उसी रूप में विद्यमान है
नेतरहाट विद्यालय, जिसने अपनी पहली सुबह 15 नवम्बर,1954 को देखी, अपनी तरह का प्रथम प्रयोग था अतः उस समय सभी को इंतजार था इस फसल के तैयार होने का विद्यालय के प्रथम बैच ने 1960 मे हायर सेकेन्ड्री की परीक्षा दी और मेधा सूची में प्रथम 10 छात्रों में 9 हाटियन थे
विद्यालय के आदर्शों पर चलकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यहाँ के छात्रों ने विद्यालय की प्रतिष्ठा के अनुरूप अपना लोहा मनवाया है विद्यालय के दिए गए संस्कारों को पूर्व छात्रों ने जीवन में उतार कर अपनी कुशलता के बल पर विद्यालय की कीर्तिपताका को गर्वोन्नत रखा है यहाँ के छात्रों का एक बड़ा हिस्सा प्रशासनिक सेवा, चिकत्सा, अभियंत्रण, अध्यापन, प्रबंधन, शोध आदि क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है पदों के अलावे यहाँ के कई छात्र सेवा को ही अपना सर्वस्व मान कर सेवा क्षेत्र में जुटे हुए हैं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों एवं उनके संपर्क क्षेत्र में "हाटियन" कुल की विशेष पहचान है
"अत्तदीपा विहरथ" अर्थात् 'अपना प्रकाश स्वयं बनो' के आदर्श को अंगीकार करते हुए यहाँ के छात्रों ने या फिर संक्षेप में नेतरहाट ने अपनी आभा जीवन के सभी क्षेत्रों में बिखेरी है तथा मानवता की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया है संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जिन उद्देश्यों, गुणात्मक शिक्षण के जिन प्रतिमानों को ध्यान में रखकर इस विद्यालय की स्थापना की गई, उनकी सिद्धि के लिए यह सतत् प्रयत्नशील रहा है


इस विद्यालय का उद्देश्य पूर्णता को प्राप्त करना नहीं है, क्योंकि कुछ भी पूर्ण नहीं हो सकता है और पूर्णता संघर्ष की, उद्यम की समाप्ति का द्योतक है अर्थात् ठहराव का हमारा प्यारा नेतरहाट जीवंत है, गतिशील है, इसका लक्ष्य पूर्णता के यथोचित सन्निकटत्व को प्राप्त करना है और हमारा यह विद्यालय अपने निहित उद्देश्यों, आदर्शों की प्राप्ति के लिए गीता के "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" के चिंतन के आधार-मार्ग पर अपने कर्त्तव्य के प्रति सचेष्ट और समर्पित है "मैं चलता चलूँ निरंतर अन्तर में विश्वास लिए"
"ना त्वहं कामये राज्यं स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामार्तिनाशनम्। "