Saturday 7 February 2009

आध्यात्मिक मिलन

(यह कविता श्री महेश नारायण सक्सेना जी के द्वारा लिखी गई है.)
रागिनी हूँ मैं तुम्हारे कंठ की,
गूँजती झंकार बन जो विश्व में।
कल्पना हूँ मैं तुम्हारे स्वप्न की,
हो रही साकार सारी सृष्टि में।

भोर की लाली तुम्हारी मैं बनूँ,
रात के गहरे तिमिर की चेतना।
सूर्य की हूँ चिलचिलाती धूप तो,
चाँद की मैं चमचमाती ज्योत्सना।

सुप्त हो आलोक के अगर तुम,
मैं तुम्हें साकार करती दीप में।
तुम बनो दीपक, तुम्हारी लौ बनूँ,
ताप भरती मैं तुम्हारी ज्योति में।

तुम ह्रदय तो मैं तुम्हारी भावना,
वेदना तुम, मैं तुम्हारी हूक हूँ।
तुम बनो ऋतुराज तो मैं कोकिला,
कोकिला तुम, मैं तुम्हारी कूक हूँ।

खोजती फिरती बयार बसंत की,
प्यार प्रिय का प्रकृति के श्रृंगार में।
मुखर होते ये मदिर स्वर कौन-से,
प्रणय पीड़ित भ्रमर के गुंजार में।

साज कर अभिसार आज वसुंधरा,
हार अम्बर के गले में डालती।
भाव के वह टिमटिमाते दीप ले,
मौन प्रियतम की उतारे आरती।

सोचती हूँ मैं तुम्हें खोजूँ कहाँ,
सिन्धु तल में या गगन के गर्भ में।
वन-विजन हिमश्रृंग के एकांत में,
कर्म झंझा क्रांति के सन्दर्भ में।

बेबसों की आह में खोजूँ तुम्हें,
या शहीदों की चिता की आग में।
क्या अभागिन के रुदन के राग में,
या सुहागिन की सिन्दूरी माँग में।

छंद समझो तुम मुझे निज गीत का,
लय सम्हालूँ मैं तुम्हारे गान की।
स्थूल की सरगम मिली जो सूक्ष्म से,
सम मिली सम से अमर संगीत की।

कौन तुम मेरे, तुम्हारी कौन मैं,
यह अधूरा प्रश्न ही रह जायेगा।
मैं वही जो तुम कहो तो हानि क्या,
प्रश्न ही उत्तर कभी बन जाएगा।

15 comments:

  1. कौन तुम मेरे, तुम्हारी कौन मैं,
    यह अधूरा प्रश्न ही रह जायेगा।
    मैं वही जो तुम कहो तो हानि क्या,
    प्रश्न ही उत्तर कभी बन जाएगा।

    बहुत सुंदर अद्भुद रचना, सुंदर शब्दों में बंधी, भावनाओं से ओत प्रोत रचना

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  2. बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. बहुत बढिया......यूं हि लिखते रहिए

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  4. सुंदर रचना
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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  5. इसकी पहली आठ लाइनें मैने गाने की कोशिश की, सफल रहा. भाव इतने सहज एवं खूबसूरत की सुर खुद-ब-खुद उससे जा मिले.

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  6. this is written by sri mahesh narayan saxena ji(teacher, netarhat vidyalaya)

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  7. हे राघव,
    कभी कभी मेरा मन स्मृति-वन में भटकता भटकता सखुआ-चीड़ के पतझड़ वनों में भी चला जता है और तब बड़ी ही शिद्दत से याद आ जाते हैं वो सारे दृश्य जो मैंने नेतरहाट में बिताये थे. 20 फरवरी 1988 से 1992 की गर्मी तक. आह! क्या समय रहा, अब कभी वापस नहीं आ पायेगा. ज्यों ज्यों बाहर की दुनिया में व्यस्त और बेचैन होता जाता हूँ, त्यों-त्यों हमारा विद्यालय एक मार्गदर्शक मीनार की भांति हमारे कम्पित पगों को मजबूती प्रदान करते हैं.
    धन्यवाद, नेतरहाट विद्यालय आधारित ब्लॉग को पढ़कर अत्यंत हर्ष का संचार हुआ.
    विनय झा [क्रमांक 374 , भाभा आश्रम, 1988 -92 ]

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  8. Dear Kumar Ragwendra ! it was a treat to delve into your sea of emotions ..which you have carefully weaved into pros and poems. You know by reading all the posts my soul and heart traveled back to the wonderful days of Netarthat.its a heavenly feeling and yours verses draged me so deeply into the world of nostalgia..maza aa gaya ...its a wonderful blog..you can add more information related to netarhat..if you wish !! GOOD LUCK
    {Arvind Hans, Vikram House, Roll Number :432, (1988-1992)

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  9. kumar raghwendra ji.....इससे सुंदर कविता ना मैने कभी पढ़ी थी
    ना पढ़ुंगा
    भाव विभार कर देने वाली कविता के रचयिता को मेरा सत् सत्
    नमन
    मैने ये कविता गाइ भी है और याद भी किया है
    abhilash prabhat..555...2003-06...bose ashram

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  10. स्कूल के stage पर से विद्यालय गान मंडली का सदस्य रहा,चटर्जी जी का चुनाव मेरी भारी आवाज शायद आधार। सक्सेना जी की ये कविता और स्वर के लिए शब्द बौने ।

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  11. 1977,से 1984 तक्षशिला आश्रम

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  12. Full song in audio
    https://youtu.be/JlIZYc9VHog

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