नेतरहाट NETARHAT
यह ब्लॉग नेतरहाट विद्यालय की यादों को समर्पित है. नेतरहाट को हम हाटियन न जाने कितने ही विविध रूपों में देखते आते हैं और वो सब कुछ हमारी भावनाओं में सदा प्रवाहित होता रहता है. नेतरहाट में हमने जीवन को जिन खूबसूरत बेहतरीन आयामों के साथ जिया था, उन्हें ही फिर से एक जगह सहेजने का यह लघु प्रयास है. आपके सुझाव यहाँ सादर आमन्त्रित हैं. raghav0435@gmail.com .... awanish413@gmail.com
Monday, 20 September 2010
Thursday, 3 December 2009
जन-गण-मन
जन-गण-मन अधिनायक, जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा,
द्रविड़-उत्कल बंग,
विन्ध्य-हिमाचल-यमुना गंगा,
उच्छल-जलधि-तरंग,
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय गाथा,
जन-गण-मंगल दायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।
यह राष्ट्रगान सम्मलेन में प्रत्येक शनिवार को गाया जाता है.
भारत-भाग्य-विधाता,
पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा,
द्रविड़-उत्कल बंग,
विन्ध्य-हिमाचल-यमुना गंगा,
उच्छल-जलधि-तरंग,
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय गाथा,
जन-गण-मंगल दायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।
यह राष्ट्रगान सम्मलेन में प्रत्येक शनिवार को गाया जाता है.
Tuesday, 1 December 2009
शारदा स्तुति
या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना । ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिदेवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा । ।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापिणीम् ।
वीणापुस्तकधारिणीं भयदां जाद्यान्धाकारापहाम् । ।
हस्ते स्फटिकमालिकां विद्धतीं पद्मासनेसंस्थिता ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां । ।
यह कुछ आश्रमों का मौनवेला मंत्र है।
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना । ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिदेवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा । ।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापिणीम् ।
वीणापुस्तकधारिणीं भयदां जाद्यान्धाकारापहाम् । ।
हस्ते स्फटिकमालिकां विद्धतीं पद्मासनेसंस्थिता ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां । ।
यह कुछ आश्रमों का मौनवेला मंत्र है।
Sunday, 22 February 2009
शिवमानसपूजा
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।
जातीचंपकविल्बपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृद्यताम्। ।
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधानम् । ।
(शिवमानसपूजा के ये दो श्लोक १५/११/०३ एवं १५/११/०४ को विद्यालय दिवस के अवसर पर मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किए गए थे।
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।
जातीचंपकविल्बपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृद्यताम्। ।
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधानम् । ।
(शिवमानसपूजा के ये दो श्लोक १५/११/०३ एवं १५/११/०४ को विद्यालय दिवस के अवसर पर मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किए गए थे।
Friday, 20 February 2009
रूद्राष्टकं
नमामिशमीशान् निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं .
निजं निर्गुनं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् .
निराकारमोंकारमूलं तुरियं गिरा ज्ञान गोतितमीशं गिरीशम् .
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोहम् .
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभिरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् .
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कन्ठे भुजन्गा .
चलत् कुन्डलम भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकन्ठं दयालम् .
मृगाधीशचर्माम्बरं मुन्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि .
प्रचन्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं अखन्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् .
त्रयः शूल निर्मुलनं शुलपाणिं भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् .
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि
चिदानन्द संदोहमोहापहारि प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि .
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तिहलोके परे वा नरानम् .
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूतादिवासम् .
न जानामि योगं जपं नैव पूजा नतोअहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् .
ज़रा जन्म दुखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपननमामिश शम्भो ।
कुछ आश्रमों में इसका पाठ मौनवेला मंत्र के रूप में होता है।
निजं निर्गुनं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् .
निराकारमोंकारमूलं तुरियं गिरा ज्ञान गोतितमीशं गिरीशम् .
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोहम् .
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभिरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् .
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कन्ठे भुजन्गा .
चलत् कुन्डलम भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकन्ठं दयालम् .
मृगाधीशचर्माम्बरं मुन्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि .
प्रचन्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं अखन्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् .
त्रयः शूल निर्मुलनं शुलपाणिं भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् .
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि
चिदानन्द संदोहमोहापहारि प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि .
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तिहलोके परे वा नरानम् .
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूतादिवासम् .
न जानामि योगं जपं नैव पूजा नतोअहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् .
ज़रा जन्म दुखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपननमामिश शम्भो ।
कुछ आश्रमों में इसका पाठ मौनवेला मंत्र के रूप में होता है।
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