नेतरहाट विद्यालय, जिसने अपनी पहली सुबह 15 नवम्बर,1954 को देखी, अपनी तरह का प्रथम प्रयोग था। अतः उस समय सभी को इंतजार था इस फसल के तैयार होने का। विद्यालय के प्रथम बैच ने 1960 मे हायर सेकेन्ड्री की परीक्षा दी और मेधा सूची में प्रथम 10 छात्रों में 9 हाटियन थे।
विद्यालय के आदर्शों पर चलकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यहाँ के छात्रों ने विद्यालय की प्रतिष्ठा के अनुरूप अपना लोहा मनवाया है। विद्यालय के दिए गए संस्कारों को पूर्व छात्रों ने जीवन में उतार कर अपनी कुशलता के बल पर विद्यालय की कीर्तिपताका को गर्वोन्नत रखा है। यहाँ के छात्रों का एक बड़ा हिस्सा प्रशासनिक सेवा, चिकत्सा, अभियंत्रण, अध्यापन, प्रबंधन, शोध आदि क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। पदों के अलावे यहाँ के कई छात्र सेवा को ही अपना सर्वस्व मान कर सेवा क्षेत्र में जुटे हुए हैं। विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों एवं उनके संपर्क क्षेत्र में "हाटियन" कुल की विशेष पहचान है।
"अत्तदीपा विहरथ" अर्थात् 'अपना प्रकाश स्वयं बनो' के आदर्श को अंगीकार करते हुए यहाँ के छात्रों ने या फिर संक्षेप में नेतरहाट ने अपनी आभा जीवन के सभी क्षेत्रों में बिखेरी है तथा मानवता की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जिन उद्देश्यों, गुणात्मक शिक्षण के जिन प्रतिमानों को ध्यान में रखकर इस विद्यालय की स्थापना की गई, उनकी सिद्धि के लिए यह सतत् प्रयत्नशील रहा है।
इस विद्यालय का उद्देश्य पूर्णता को प्राप्त करना नहीं है, क्योंकि कुछ भी पूर्ण नहीं हो सकता है और पूर्णता संघर्ष की, उद्यम की समाप्ति का द्योतक है अर्थात् ठहराव का। हमारा प्यारा नेतरहाट जीवंत है, गतिशील है, इसका लक्ष्य पूर्णता के यथोचित सन्निकटत्व को प्राप्त करना है और हमारा यह विद्यालय अपने निहित उद्देश्यों, आदर्शों की प्राप्ति के लिए गीता के "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" के चिंतन के आधार-मार्ग पर अपने कर्त्तव्य के प्रति सचेष्ट और समर्पित है। "मैं चलता चलूँ निरंतर अन्तर में विश्वास लिए"
"ना त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामार्तिनाशनम्। । "
कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामार्तिनाशनम्। । "
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