Sunday, 11 January 2009

उद्देश्य और सफलता का सातत्य

उद्देश्य अपने आप में काफी बड़ा अर्थ रखता है उद्देश्य को प्रायः उकृष्ट ही माना जाता है और उद्देश्य की सफलता अपना अर्थ रखती है- उत्कृष्ट की प्राप्ति जो वांछित लक्ष्य की प्राप्ति ही है नेतरहाट विद्यालय की स्थापना के पीछे काफी उद्देश्य अथवा निर्धन और मेधावी छात्रों को एक ऐसा वातावरण उपलब्ध करना है, जहाँ वे अपना सर्वांगीण विकास कर सकें आज जब नेतरहाट विद्यालय अपने स्वर्ण जयन्ती वर्ष में है तो हमारे लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि हम स्वतः अपना मूल्यांकन करें और विवेचना करें कि क्या हम अपने उद्देश्यों में सफल हो पाये हैं छात्र किसी भी विद्यालय की आत्मा होते हैं किसी भी विद्यालय की श्रेष्ठता, उसका महत्त्व, उसकी कीर्तिपताका उसके छात्रों के प्रदर्शन के बल पर ही टिकी होती है 31 अगस्त,2004 को विद्यालय दौरे पर आए महामहिम राज्यपाल श्री वेदप्रकाश मारवाह ने अपने संबोधन में कहा था-"नेतरहाट विद्यालय यदि जगह बनाएगा तो अपने छात्रों के साथ ही वे ही इसकी यशोगाथा के वाहक होंगे" तो अभी का यह अवसर उनकी इस बात की कसौटी पर छात्रों, पूर्ववर्त्ती छात्रों की सफलताओं को आंकने की प्रेरणा देता है कि विद्यालय अपने उद्देश्यों में कितना सफल हो पाया है यों तो ऐसे पूर्ववर्त्ती छात्रों की सूची काफी लम्बी है, जिन्होनें अपने जीवन में विभिन्न उंचाईयों को छुआ इस लघु निबंध के अंतर्गत उन सभी का यहाँ उल्लेख कर पाना लाख चाहने के बावजूद सम्भव नहीं है उपलब्धियों की सूची इतनी लम्बी है कि उनसे एक विशिष्ट पुस्तिका निकाली जा सकती है स्थापनाकाल से हमारा विद्यालय पूर्वनिर्देशित उद्देश्यों को यथार्थ के रूप में प्रस्तुत कर पाने में सक्षम रहा है स्थापनाकाल की परिणाम प्राप्ति से ही कई छात्र इंजीनियर एवं डॉक्टर रहे और अखिल भारतीय सेवाओं में भी छात्र गएयह परम्परा आज भी उसी रूप में विद्यमान है
नेतरहाट विद्यालय, जिसने अपनी पहली सुबह 15 नवम्बर,1954 को देखी, अपनी तरह का प्रथम प्रयोग था अतः उस समय सभी को इंतजार था इस फसल के तैयार होने का विद्यालय के प्रथम बैच ने 1960 मे हायर सेकेन्ड्री की परीक्षा दी और मेधा सूची में प्रथम 10 छात्रों में 9 हाटियन थे
विद्यालय के आदर्शों पर चलकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यहाँ के छात्रों ने विद्यालय की प्रतिष्ठा के अनुरूप अपना लोहा मनवाया है विद्यालय के दिए गए संस्कारों को पूर्व छात्रों ने जीवन में उतार कर अपनी कुशलता के बल पर विद्यालय की कीर्तिपताका को गर्वोन्नत रखा है यहाँ के छात्रों का एक बड़ा हिस्सा प्रशासनिक सेवा, चिकत्सा, अभियंत्रण, अध्यापन, प्रबंधन, शोध आदि क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है पदों के अलावे यहाँ के कई छात्र सेवा को ही अपना सर्वस्व मान कर सेवा क्षेत्र में जुटे हुए हैं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों एवं उनके संपर्क क्षेत्र में "हाटियन" कुल की विशेष पहचान है
"अत्तदीपा विहरथ" अर्थात् 'अपना प्रकाश स्वयं बनो' के आदर्श को अंगीकार करते हुए यहाँ के छात्रों ने या फिर संक्षेप में नेतरहाट ने अपनी आभा जीवन के सभी क्षेत्रों में बिखेरी है तथा मानवता की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया है संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जिन उद्देश्यों, गुणात्मक शिक्षण के जिन प्रतिमानों को ध्यान में रखकर इस विद्यालय की स्थापना की गई, उनकी सिद्धि के लिए यह सतत् प्रयत्नशील रहा है


इस विद्यालय का उद्देश्य पूर्णता को प्राप्त करना नहीं है, क्योंकि कुछ भी पूर्ण नहीं हो सकता है और पूर्णता संघर्ष की, उद्यम की समाप्ति का द्योतक है अर्थात् ठहराव का हमारा प्यारा नेतरहाट जीवंत है, गतिशील है, इसका लक्ष्य पूर्णता के यथोचित सन्निकटत्व को प्राप्त करना है और हमारा यह विद्यालय अपने निहित उद्देश्यों, आदर्शों की प्राप्ति के लिए गीता के "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" के चिंतन के आधार-मार्ग पर अपने कर्त्तव्य के प्रति सचेष्ट और समर्पित है "मैं चलता चलूँ निरंतर अन्तर में विश्वास लिए"
"ना त्वहं कामये राज्यं स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामार्तिनाशनम्। "





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