Thursday 1 January 2009

प्रकृति का ह्रदय : नींव की ईंट

A plateau 4 miles long & two and a half miles broad. It is in the extreme south of the Latehar district (then Palamau), the highest point of which is 3800 feet above the sea-level. It is 96 miles west of ranchi across seven hills. The stillness of jungles and the cold refreshing air brings relief from the dust and the heat of plains. It has a gane sanctuary amidst pine forest that bestow a singular arboreal interest in this part. It is comparatively unknown to the tourists from outside although, it is one of the rare beauty spots which is capable of great developement.
This plateau is the "Plateau of Netarhat".

इस सुरम्य प्रकृति को सबसे पहले सामने लाने का श्रेय सर एडवर्ड गेट, तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर (बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा) को जाता है। उन्होंने ही यहाँ पर अपने आवास राजभवन (शैले हाउस, The Challet) का निर्माण करवाया। साथ ही अन्य बुनियादी संरचनाएँ भी स्थापित की गई। "नेतरहाट श्री" के वर्त्तमान भाग्योदय का श्रीगणेश तभी से हुआ, जब किसी ने प्रथमतः उसके बाह्य सौंदर्य का अवलोकन किया था। लेकिन उसकी आत्मा को अब भी उसकी यथोचित खुराक नहीं मिल पायी थी। नेतरहाट श्री का अन्तस् अब भी अतृप्त था। सर एडवर्ड गेट के बाद के भी गवर्नरों ने भी यहाँ की प्राकृतिक सुषमा का भरपूर रसपान किया।वैसे यहाँ की प्रकृति का आँचल बनारी से सामने लहराता है, जहाँ से बारह मील की चढाई आरम्भ होती है।
शैले लकड़ी की बनी एक भव्य इमारत है, जिसके सामने एक भव्य उपवन हुआ करता था। इस राजभवन के साथ ही टेनिस कोर्ट एवं कुछ ही दूरी पर गोल्फ ग्राउंड भी था। इसके साथ-साथ कुछ अन्य बंगले भी थे, आउटहाउसेज भी बनाये गए, पुलिस बैरकों व कर्मचारी आवास , डाकघर, पी.डब्ल्यू.डी, पी.एच.ई.डी , कृषि फार्म आदि बुनियादी संरचनाओं का भी निर्माण हुआ। इन बुनियादी सुविधाओं के पीछे सर एडवर्ड गेट थे। सर एडवर्ड को इस स्थान से, यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता से, सखुए के सघन जंगलों से, पहाड़ियों की विहंगम दृश्यावली से, लगभग 12 वर्गमील में फैले प्रकृति के अक्षत् आगार से और यहाँ की सरलता से प्रेम था। उनके प्रेम के ये ही प्रतिमान नेतरहाट के वे पक्ष हैं, जिन्होंने नेतरहाट को एफ.जी.पियर्स की नजर से क्षण में उनके मनोमस्तिष्क में पहुँचा दिया।
खैर, यह उत्कंठा स्वाभाविक ही है कि पियर्स कि नजरों ने आख़िर क्या कर लिया या फिर नजरों का क्या उद्देश्य था।उन आंखों में छिपे उद्देश्य के पीछे की भूमिका वर्ष 1945-1946 के आस-पास लिखी जानी शुरू हो गयी थी। तत्कालीन बिहार के उच्चशिक्षित धनाढ्य वर्ग के लोगों ने एक विशिष्ट पब्लिक स्कूल की मांग करनी शुरू कर डी, क्योंकि वे अपने प्रतिपाल्यों को स्वयं से बहुत ज्यादा दूर सिंधिया, मेयो, दून आदि स्कूलों में भेजने के बदले पास में ही वैसी सुविधाएं चाहते थे। धीरे-धीरे यह मांग 'जनसाधारण हिताय' हो गयी थी। इस सम्बन्ध में श्री सरयुग प्रसाद सिंह, विधायक, ने वर्ष 1947 में एक प्रस्ताव पेश किया, जो 1948 . तक आते-आते स्वीकार हो गया। इस प्रस्ताव से पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में डॉ श्रीकृष्ण सिंह, तत्कालीन मुख्यमंत्री (बिहार) से एक प्रश्न पूछा था, जिसका आशय था कि आपके राज्य से लोग शैक्षिक क्षेत्र में आगे क्यों नही आ रहे हैं? और उस समय अखिल भारतीय सेवाओं में बिहार का अनुपात जनसंख्या के अनुपात से काफ़ी कम था। इसलिए यह बात भी डॉ श्रीकृष्ण सिंह के दिमाग में थी। वर्ष 1948 में ए.ए.काजमी की अध्यक्षता में आयोग गठित हुआ, जिसने 'बिहार पब्लिक स्कूल' के सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट भी दी थी, लेकिन योजना में प्रस्तावित व्यय अत्यधिक था। साथ ही यह योजना स्वतन्त्रता के उद्देश्यों यथा- सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व आदि उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करती थी।कार्य पद्धति विशेषाधिकारप्राप्त वर्ग के प्रति ज्यादा उन्मुख थी, जिस कारण इसे अस्वीकार कर दिया गया।
वर्ष 1951 में यह मांग फिर से सामने आयी। इस बार यह मांग कहीं ज्यादा व्यापक और सशक्त थी। इस समय बिहार के मुख्य सचिव श्री ललन प्रसाद सिंह, I.C.S. थे और शिक्षा सचिव श्री जगदीशचंद्र माथुर, I.C.S. थे। श्री जगदीशचंद्र माथुर ने ऋषिवैली स्कूल, चित्तूर के तत्कालीन प्राचार्य श्री एफ.जी.पियर्स को 1951 . में बिहार आमंत्रित किया। श्री पियर्स की क्षमता से श्री ललन प्रसाद सिंह एवं श्री माथुर दोनों ही पूर्वपरिचित थे। श्री पियर्स पूर्व में भारत और श्रीलंका के शिक्षा जगत् में उत्कृष्ट योगदान कर चुके थे। भारतीय शिक्षा जगत् में उनका कद अतुलनीय था जाति से अंग्रेज होने के बावजूद उन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि मान लिया था व्यस्तता और समयाभाव के कारण पियर्स ने छुट्टियों में आकर बिना वेतन ही कार्य करने के रूप में आमंत्रण का जवाब दिया, जिसे निःसंकोच स्वीकार लिया गया पियर्स ने काजमी रिपोर्ट की कुछ विशेषताओं को भी लिया और अपने चिंतन-मनन से 'विद्या विहार' की योजना तैयार की 'विद्या विहार' वह परिकल्पना थी, जिसका मूर्त्त रूप 'नेतरहाट विद्यालय' है उन्होंने 25 दिसम्बर, 1951 ई. को अपनी महात्वाकांक्षी रिपोर्ट सरकार को सौंपीं इस रिपोर्ट में 10 से 18 वर्ष तक के लड़कों के सर्वांगीण विकास पर जोर डाला गया साथ ही यह कोशिश भी की गयी थी, कि कुल आवर्ती खर्च दो जिला स्कूलों के लगभग समतुल्य हो इसके साथ ही पियर्स के दिमाग में यह बात थी कि छोटे-छोटे समूह में योग्य शिक्षकों द्वारा मनोयोग से पढ़ाया जाना अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है इस योजना को विद्यालय स्तर पर केन्द्रित करने के पीछे का कारण 'कच्चे पौधे' को भली-भांति विकसित करना था, क्योंकि इच्छित संस्कारों का बीज सिर्फ़ इसी अवस्था में सरलता से बोया जा सकता है
जून, 1953 . में तत्कालीन मुख्य सचिव श्री लालन प्रसाद सिंह ने पियर्स रिपोर्ट को अपनी इस टिप्पणी के साथ अनुशंसित करते हुए आगे बढाया- " Mr. Pearce's scheme envisaged an institution that would seek to serve certain interests of the community as a whole and not to any particular class. An institution that would cater to the aristocracy of the intellect and character among the boys of the state irrespective of the social class to which they belonged and the financial resources of their parents. Boys, who were mentally best equipped, would be brought together and given the best all-round education that was possible, so as to fit them up for public services, social services or excellence, leadership of the rural community and public life generally."
24 जुलाई, 1953 . का वह दिन नेतरहाट के लिए नींव का पत्थर साबित हुआ, जिस दिन उस 'विद्या विहार' या 'पब्लिक स्कूल' को नेतरहाट में खोलने का निर्णय लिया गया उसी दिन इसके बजट संबंधी प्रावधानों के बारे में भी निर्णय ले लिया गया था
इतना सफर जानने के बाद यह भी उत्कंठा हो सकती है, कि यह विद्यालय नेतरहाट में ही क्यों खोला गया ? क्या नेतरहाट ही एकमात्र विकल्प था या कोई और ? इसका उत्तर भी आगे है विद्यालय के लिए नेतरहाट से पूर्व पियर्स ने बूटी, दीपाटोली, मखमन्डारो, टाटी सिल्वे, खोजतोलिया, हटिया, ब्राम्बे आदि जगहों पर भी विचार किया था साथ ही पियर्स ने तिरील आश्रम का भी दौरा किया था विद्यालय के लिए पियर्स की पसंद रांची के आस-पास का ही क्षेत्र था, क्योंकि यही एक क्षेत्र था, जो उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरता था, यथा- शांत और शुद्ध वातावरण प्रारम्भ में पियर्स ने ब्राम्बे को ही उपलब्ध सुविधायों के आधार पर विद्यालय के लिए उपयुक्त स्थान मान लिया था लेकिन तभी उन्हें नेतरहाट के बारे में पता चला, जो अंततः उनकी अटल और एकमात्र पसंद रही, बिना किसी लाग-लपेट केहालांकि अन्य जगहों से भी उन्हें अनुकूल प्रस्ताव आये थे
पियर्स ने विद्यालय के लिए स्थान चयन के पीछे कुछ मानदंड भी निर्धारित किए थे, जो निम्नलिखित हैं-
() विद्यालय शुद्ध ग्रामीण परिवेश में रहेशहर से इसकी दूरी यहाँ के छात्रों को शहरी बुराईयों, तड़क-भड़क और वहाँ के प्रदूषित-कलुषित वातावरण से दूर रखने में सहायक सिद्ध होगीइससे विद्यालय भी अपने मूल स्वरुप को अक्षुण्ण रख सकेगाग्रामीण क्षेत्र को चुनने के पीछे पियर्स की सोच थी कि यह इस तथ्य को उजागर करे कि ग्रामीण परिवेश अपेक्षाकृत स्वास्थ्यकर, सुखकर और बेहतर हो सकते हैं, एक भीड़-भाड़ वाले शहर या उसके निकट केग्रामीण परिवेश की एक अलग ही आत्माभिव्यक्ति होती है और यह तनावमुक्त होता है
() वहाँ की जलवायु स्वस्थ और मृदु हो, तो ज्यादा गर्म हो और ज्यादा ठंढी ताकि मौसम के अनुकूल व्यवस्थाओं पर अनावश्यक ज्यादा व्यय ना होज्यादा समय अच्छी धूप हो, ताकि आउटडोर गतिविधियाँ भी सरलता से कराई जा सकें

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