हमारे विद्यालय का सूत्रवाक्य है- "अत्तदीपा विहरथ", जिसे ग्रहण करने की प्रेरणा तत्कालीन नालंदा नवविहार के भिक्षु श्री जगदीश कश्यप ने दी थी। यह पालि त्रिपिटक के सुत्तपिटक में संगृहीत 'महापरिनिब्बाण सुतं' से उद्धृत है, जिसे बुद्ध के संदेश का सार कहा जा सकता है-
'अत्तदीपा विहरथ अत्तसरणा, अनञ्ञसरणा,
धम्मदीपा धम्मसरणा अनञ्ञसरणा।'
यह उपदेश बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के समय अपने प्रिय भिक्षु आनंद को दिया था, जब आनंद महाबुद्ध के संभावित निर्वाण के कारण व्यग्र-विकल थे।
ठीक ऐसी ही भावना हमारे उपनिषदों में भी देखने को मिलती है- 'आत्मदीपो भव'। 'अत्तदीपा विहरथ' और 'आत्मदीपो भव' दोनों का एक ही अर्थ है- अपना प्रकाश स्वयं बनो।
विद्यालय के प्रतीक चिह्न में स्वस्तिक, पीपल का वृक्ष, दीपक हैं। स्वस्तिक चिह्न कल्याण की भावना का द्योतक है, शुभम् भव का सूचक है। यह पवित्रता का प्रतीक है। पीपल का वृक्ष बुद्धत्व प्राप्ति(ज्ञान प्राप्ति) का सूचक है, क्योंकि पीपल वृक्ष के नीचे ही बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वहीं दीपक ज्ञान का प्रतीक है, सम्यक् ज्ञान का। सम्यक् ज्ञान से सम्यक् चेष्टा आदि सम्यक् चीजों का उद्बोधन होता है विद्यालय के प्रतीकचिह्न में दीपक से निकलते पीपल वृक्ष का संकेत भी यदि व्यापक अर्थों में लिया जाए, तो 'हरी अनंत, हरिकथा अनंता' वाली बात चरितार्थ हो जाती है और पूर्वोक्त बातों के अनुसार अर्थ भी ज्ञान प्राप्ति के अजस्त्र स्त्रोत दीपक से ज्ञान प्राप्ति का होना ही है.
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