स्वाध्याय :
यह यहाँ की शिक्षण व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है। स्वाध्याय को यहाँ की मौलिक आवश्यकता के रूप में परिभाषित किया गया है। आश्रमों में छात्रों का अधिकांश समय स्वाध्याय को ही समर्पित रहता है। जिस प्रकार भोजन से पूर्व यहाँ भोजन मंत्र के मंत्रोच्चारण की परम्परा रही है, उसी प्रकार यहाँ स्वाध्याय की शुरुआत भी स्वाध्याय मंत्र के उच्चारण के साथ होती है। स्वाध्याय के समय सभी छात्र एक साथ 'स्वाध्याय कक्ष' में बैठकर स्वाध्याय करते हैं एवं उस दौरान किसी भी प्रकार की अनावश्यक ध्वनि का उच्चारण वर्जित होता है। स्वाध्याय की विधा ही अध्ययन का सर्वस्व है। कहा गया है-"स्वाध्यायात् मा प्रमदः"। स्वाध्याय की यह विधा पुस्तकालय के माध्यम से पूर्णता को प्राप्त करती है। शिक्षकों का मूलधर्म यहाँ छात्रों को जिज्ञासा का पात्र बनाकर पुस्तकों के अवगाहन के लिए प्रेरित करना हैं। उस क्रम में उत्पन्न समस्याओं के समाधान के समाधान के क्रम में छात्र शिक्षकों की थोडी-बहुत मदद लेते हैं। स्वाध्याय की यह प्रक्रिया यहाँ के छात्रों में आत्मचिंतन, आत्मविकास की प्रवृत्ति को बढावा देती है तथा विषयों के मूल में जाने की सहज योग्यता प्रदान करती है। इन सब चीजों को जानकर यह सहज ही मालूम होता है कि प्रकृति का इसमें कितना विशिष्ट योगदान है।
पुस्तकालय :
विद्यालय स्तर पर 45,000 से भी ज्यादा पुस्तकों से युक्त नेतरहाट विद्यालय पुस्तकालय में छात्रों को उच्च स्तर की सुविधाएं प्राप्त हैं। यहाँ छात्रों को विषयों का प्रवह ज्ञान प्राप्त करने के लिए शिक्षा-साहित्य की हरेक विधा के आरम्भ से स्नातकोत्तर स्तर तक की पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिससे छात्रों को अपने-अपने विषयों में पूरी गहराई में जाने का अवसर सहजता से मिलता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम से संबंधित पुस्तकों के साथ-साथ प्रयुक्त पाठ्यक्रमेत्तर विषयों की पुस्तकें भी समग्र ज्ञान के उद्देश्य से यहाँ उपलब्ध हैं। दशाधिक दैनिक समाचारपत्रों एवं इसकी ही तिगुनी-चौगुनी संख्या में आने वाली विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं की उपलब्धता छात्रों के ज्ञान को अद्यतन (अप-टू-डेट) बनाती है। यहाँ के पुस्तकालय की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ की 'उन्मुक्त पुस्तकालय' (खुली दराज़ प्रणाली) या ओपन सेल्फ सिस्टेम है। छात्र यहाँ बिना किसी औपचारिकता के इच्छित पुस्तकों को लेकर उनका लाभ उठा सकते हैं। पुस्तकों को इच्छानुसार उनकी जगह से वे स्वयं ही ले सकते हैं, इसमे कोई बंदिश नही रहती है। यह व्यवस्था छात्रोन्मुखी है और दुनिया के अधिकांशतः पुस्तकालयों में नहीं है।
प्रयोगशाला :
पुस्तकालय के बाद हमारे लिए शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण और रोचक स्थान यहाँ की प्रयोगशालाएं एवं कार्यशालाएं हैं। प्रयोगशालाएं अच्छे व उन्नत यंत्रों तथा रसायनों से सुसज्जित रहने के कारन रूचि के पोषण के साथ-साथ छात्रों के व्यावहारिक ज्ञान को भी विकसित करती है। भौतिकी तथा रसायन प्रयोगशाला में मानव या उसके संसाधनों की भूमिका प्रत्यक्षतः रहती है, वहीं यहाँ की जीवविज्ञान प्रयोगशाला में प्रकृति की भूमिका स्पष्टतया अनुभूत की जा सकती है। सर्पों की अनेकानेक किस्में, समृद्ध जीव जगत, समृद्ध पारिस्थिक तंत्र की उपलब्धता छात्रों के सामान्य एवं व्यावहारिक ज्ञान का विस्तार करती है। प्रयोगशालाओं का उद्देश्य भी छात्रों के सैद्धांतिक ज्ञान को पूर्णता देना है। प्रयोगशालाओं की उत्तमता छात्रों को गुणात्मक शिक्षा व श्रेष्ठता दिलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।
यहाँ के पुस्तकालय में उपलब्ध स्नाकोत्तर स्तर तक की पुस्तकों तथा प्रयोगशालाओं में उपलब्ध स्नातक स्तर तक की प्रायोगिक सुविधाओं को देखकर अन्य संस्थानों यथा- रांची विश्वविद्यालय के बाह्य परीक्षकों को भी ईर्ष्या होती थी। यहाँ के पुस्तकालय एवं प्रयोगशालाओं के उत्कृष्ट स्तर को देखकर अपने समय के प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री श्री जी. पी. दुबे ने कहा था- 'इन छात्रों के लिए भला ऐसे समृद्ध पुस्तकालय एवं प्रायोगिक उपकरणों की क्या आवश्यकता थी?'
कार्यशालाएँ :
प्रयोगशालाओं के अतिरिक्त कार्यशालाएँ भी व्यावहारिक ज्ञान का प्रमुख स्रोत रही हैं। वे बहुत ही उच्च कोटि कीवं उत्तम यंत्रों से सुसज्जित हैं। काष्ठनिर्माणशाला तथा लौहनिर्माणशाला उन्नत यंत्रों से युक्त है तथा छात्र यहाँ काष्ठकला व धातुकला के विषय में उच्च कोटि का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये विभाग छात्रों को उत्पादकता की मौलिक कसौटियों की समझ एवं यंत्रों की कार्यपद्धति के बारे में एक विशेष अन्तःदृष्टि विकसित करते हैं।
संगीत :
यह हमारे विद्यालय में यह एक उन्नत विरासत के रूप में विद्यमान है। विभिन्न विषयों के बीच ये विभाग (कला एवं संगीत) हमारा कौशलवर्द्धन करते हैं। ये हमें मनोरंजन की विधा को देते हुए एक रचनात्मक योग्यता से परिपूर्ण करते हैं।
संगीत में हम संगीत की आधारभूत बातों को जानते हुए विभिन्न वाद्ययंत्रों विशेषकर तबला एवं हारमोनियम का ज्ञान प्राप्त करते हैं। साथ ही 'वृन्द वादन' के अंतर्गत भाग लेने वाले छात्र इनके अतिरिक्त विभिन्न वाद्ययंत्रों को बजाने की कला सीखते हैं। संगीत एवं कला के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने पर उन्हें आत्मिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नयन के साधन के रूप में जान पाते हैं। विद्या और कला (सम्पूर्ण रूप में) का अभिन्न सम्बन्ध माना गया है और इस दृष्टिकोण से हम संगीत में उसके भावों, उद्देश्यों, साधनों की गहराईयों का भली-भांति अनुभव कर पाते हैं।
कला :
कला हमारी रचनात्मकता को एक दिशा, एक योग्यता प्रदान करती है। कला की समुचित अवधारणायें जो प्राचीन काल से अब तक विद्यमान हैं और क्रमशः विकसित होकर आगे बढती जा रही है, उनकी जानकारी हमें सहज ही मिल जाती है। छात्रों के विषयगत कौशलों के परिवर्द्धन-परिसंस्करण पर जोर देते हुए बहुआयामी शिक्षा पर जोर दिया जाता था, जिसके अंतर्गत योजना थी कि नेतरहाट के छात्र ललित कलाओं में भी अग्रणी निकलें। तूलिका से रेखाचित्रण, भावचित्रण, संगीतकला, अभिनयकला, प्रस्तर मूर्त्तिकला, मृण्मय मूर्त्तिकला, काष्ठ मूर्त्तिकला के अलावे कोलाज, डिजाइन आदि के विभिन्न आयामों की भी छात्रों को शिक्षा दी जाए, ऐसा उद्देश्य भी था। इस क्षेत्र में महर्षि टैगोर के शान्तिनिकेतन को सामने रखा गया था। ललित कलाओं में यहाँ पर उपलबद्ध संसाधनों के ही उपयोग पर जोर डाला गया है।
कला की जीवंत अवधारणा को आत्मसात करने में यहाँ की प्रकृति का छात्रों को महत्वपूर्ण योगदान मिलता है। प्रकृति हमें वे सारे उपादान, अभिधा, लक्षणा और व्यंजना रूपों में ही उपलब्द्ध कराती है, जिससे कल्पना को विस्तार देने में छात्रों को मदद मिलती है। प्रकृति कला के शिक्षा-प्रदर्श्यों के निर्माण में हमारी बहुत बड़ी सहायता करती है।
श्रमदान :
यहाँ की उन परम्पराओं में श्रमदान अपना विशिष्ट स्थान रखता है, जो छात्रों को सहयोग एवं उत्तरदायित्व का बोध कराती हैं।विद्यालय के निर्माण के समय से ही विद्यालय मे श्रमदान की सुदृढ परम्परा रही है। इससे छात्रों में सामूहिक भावना का विकास होता है। गांधी जयन्ती के अवसर पर छात्र विद्यालय के आस-पास के क्षेत्रों मे भी श्रमदान किया करते हैं।
हॉबी-क्लब :
छात्रों को उनकी रुचियों में उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए एयरो-मॉडलिंग, शिप-मॉडलिंग, राइफल क्लब, रेडियो क्लब, स्टांप-कलेक्शन (टिकट-संग्रहण), फोटोग्राफी, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑर्निथोलॉजी, सिक्का-संग्रहण, बागवानी, स्टार-गेजिंग, पत्रकारिता, पाठ्यक्रमेत्तर भाषाओं यथा- बांगला, फ्रेंच आदि के जानकर शिक्षकों से उनका प्रशिक्षण, सामान्य जानकारी आदि लेने का उद्देश्य रखा गया था।
छात्रों को कृषि एवं वानिकी की भी शिक्षा दी जाती रही है। छात्रों को ग्रामीण परिवेश में रखकर इनकी शिक्षा देने के पीछे का उद्देश्य यह था कि ये छात्र जो कल देश और समाज का प्रतिनिधिनित्व करेंगे, ग्राम्य जीवन की बारीकियों को भी समझते रहें और अपनी वास्तविक जड़ से जुड़े रहकर उनके कल्याण के प्रति समर्पित रहें।
एन. सी. सी. :
छात्रों में विभिन्न गुणों को भरने के क्रम में तथा नेतृत्व-क्षमता, सामूहिकता आदि के विकास के लिए एन। एन. सी., स्काउट आदि भी नियमित समयचर्या में शामिल है. यहाँ पर एन. सी. सी. की तीनों इकाईयाँ (आर्मी, एयर व नेवल विंग) हैं.
कक्षा-व्यवस्था :
यहाँ की शिक्षा को गुणात्मक बनाने में छात्रों पर व्यक्तिगत निर्देशन का महत्वपूर्ण योगदान है। छात्रों को कम संख्या वाले निकायों में मेधा के आधार पर बांटकर शिक्षा देने की प्रक्रिया छात्रों के शिक्षण को समुचित पोषण देती है। पूर्व में एक सत्र में 60 लड़कों का एक बैच आता था, लेकिन अभी के 100 छात्रों के बैच में उन्हें 25-25 के चार उपवर्गों में मेधा के अनुसार रखा जाता है, जिससे छात्र-शिक्षक संवाद-संबंधों का यथेष्ट विकास होता है। छात्रों के व्यक्तित्व-निर्माण में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। छात्रों के मेधा-परिक्षण की निरंतरता उनके अन्दर की ज्ञान की ज्योति को जाज्वल्यमान बनाए रखती है। मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं के आयोजन से छात्रों की मेधा का उत्तरोत्तर उन्नयन होता रहता है। छात्रों की मेधा के उन्नायक के रूप में शिक्षकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विद्यालय के सभी शिक्षक उच्च उपाधि प्राप्तकर्ता हैं और शायद ही कोई ऐसा माध्यमिक विद्यालय हो, जहाँ ऐसे विषय-शिक्षक हों, जो अपने-अपने विषय में न्यूनतम स्नातकोत्तर तथा विशिष्ट उपलब्धि वाले हो। उनकी योग्यताएँ भी उच्चस्तरीय हैं। स्टाफ रूम के अलावे हरेक शिक्षक को अपना अलग-अलग प्रकोष्ठ मिलता है और साथ ही उनके पढाने के कक्ष भी नियत होते हैं। ये प्रकोष्ठ उन कक्षों से सटे होते हैं। ये कक्ष preparatory room की तरह उपयोग में लाए जाते हैं। शिक्षक कक्षा लेने से पूर्व कुछ देखकर या पूर्व तैयारी करने के उद्देश्य से इसका उपयोग करते हैं। छात्रों के गृहकार्य की वे यहीं जाँच करते हैं और छात्रों की प्रगति का मूल्यांकन एवं अन्य शिक्षोपयोगी उपकरणों को रखने के लिए शिक्षक प्रकोष्ठ का उपयोग करते हैं।
यह हमारे विद्यालय में यह एक उन्नत विरासत के रूप में विद्यमान है। विभिन्न विषयों के बीच ये विभाग (कला एवं संगीत) हमारा कौशलवर्द्धन करते हैं। ये हमें मनोरंजन की विधा को देते हुए एक रचनात्मक योग्यता से परिपूर्ण करते हैं।
संगीत में हम संगीत की आधारभूत बातों को जानते हुए विभिन्न वाद्ययंत्रों विशेषकर तबला एवं हारमोनियम का ज्ञान प्राप्त करते हैं। साथ ही 'वृन्द वादन' के अंतर्गत भाग लेने वाले छात्र इनके अतिरिक्त विभिन्न वाद्ययंत्रों को बजाने की कला सीखते हैं। संगीत एवं कला के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने पर उन्हें आत्मिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नयन के साधन के रूप में जान पाते हैं। विद्या और कला (सम्पूर्ण रूप में) का अभिन्न सम्बन्ध माना गया है और इस दृष्टिकोण से हम संगीत में उसके भावों, उद्देश्यों, साधनों की गहराईयों का भली-भांति अनुभव कर पाते हैं।
कला :
कला हमारी रचनात्मकता को एक दिशा, एक योग्यता प्रदान करती है। कला की समुचित अवधारणायें जो प्राचीन काल से अब तक विद्यमान हैं और क्रमशः विकसित होकर आगे बढती जा रही है, उनकी जानकारी हमें सहज ही मिल जाती है। छात्रों के विषयगत कौशलों के परिवर्द्धन-परिसंस्करण पर जोर देते हुए बहुआयामी शिक्षा पर जोर दिया जाता था, जिसके अंतर्गत योजना थी कि नेतरहाट के छात्र ललित कलाओं में भी अग्रणी निकलें। तूलिका से रेखाचित्रण, भावचित्रण, संगीतकला, अभिनयकला, प्रस्तर मूर्त्तिकला, मृण्मय मूर्त्तिकला, काष्ठ मूर्त्तिकला के अलावे कोलाज, डिजाइन आदि के विभिन्न आयामों की भी छात्रों को शिक्षा दी जाए, ऐसा उद्देश्य भी था। इस क्षेत्र में महर्षि टैगोर के शान्तिनिकेतन को सामने रखा गया था। ललित कलाओं में यहाँ पर उपलबद्ध संसाधनों के ही उपयोग पर जोर डाला गया है।
कला की जीवंत अवधारणा को आत्मसात करने में यहाँ की प्रकृति का छात्रों को महत्वपूर्ण योगदान मिलता है। प्रकृति हमें वे सारे उपादान, अभिधा, लक्षणा और व्यंजना रूपों में ही उपलब्द्ध कराती है, जिससे कल्पना को विस्तार देने में छात्रों को मदद मिलती है। प्रकृति कला के शिक्षा-प्रदर्श्यों के निर्माण में हमारी बहुत बड़ी सहायता करती है।
श्रमदान :
यहाँ की उन परम्पराओं में श्रमदान अपना विशिष्ट स्थान रखता है, जो छात्रों को सहयोग एवं उत्तरदायित्व का बोध कराती हैं।विद्यालय के निर्माण के समय से ही विद्यालय मे श्रमदान की सुदृढ परम्परा रही है। इससे छात्रों में सामूहिक भावना का विकास होता है। गांधी जयन्ती के अवसर पर छात्र विद्यालय के आस-पास के क्षेत्रों मे भी श्रमदान किया करते हैं।
हॉबी-क्लब :
छात्रों को उनकी रुचियों में उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए एयरो-मॉडलिंग, शिप-मॉडलिंग, राइफल क्लब, रेडियो क्लब, स्टांप-कलेक्शन (टिकट-संग्रहण), फोटोग्राफी, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑर्निथोलॉजी, सिक्का-संग्रहण, बागवानी, स्टार-गेजिंग, पत्रकारिता, पाठ्यक्रमेत्तर भाषाओं यथा- बांगला, फ्रेंच आदि के जानकर शिक्षकों से उनका प्रशिक्षण, सामान्य जानकारी आदि लेने का उद्देश्य रखा गया था।
छात्रों को कृषि एवं वानिकी की भी शिक्षा दी जाती रही है। छात्रों को ग्रामीण परिवेश में रखकर इनकी शिक्षा देने के पीछे का उद्देश्य यह था कि ये छात्र जो कल देश और समाज का प्रतिनिधिनित्व करेंगे, ग्राम्य जीवन की बारीकियों को भी समझते रहें और अपनी वास्तविक जड़ से जुड़े रहकर उनके कल्याण के प्रति समर्पित रहें।
एन. सी. सी. :
छात्रों में विभिन्न गुणों को भरने के क्रम में तथा नेतृत्व-क्षमता, सामूहिकता आदि के विकास के लिए एन। एन. सी., स्काउट आदि भी नियमित समयचर्या में शामिल है. यहाँ पर एन. सी. सी. की तीनों इकाईयाँ (आर्मी, एयर व नेवल विंग) हैं.
कक्षा-व्यवस्था :
यहाँ की शिक्षा को गुणात्मक बनाने में छात्रों पर व्यक्तिगत निर्देशन का महत्वपूर्ण योगदान है। छात्रों को कम संख्या वाले निकायों में मेधा के आधार पर बांटकर शिक्षा देने की प्रक्रिया छात्रों के शिक्षण को समुचित पोषण देती है। पूर्व में एक सत्र में 60 लड़कों का एक बैच आता था, लेकिन अभी के 100 छात्रों के बैच में उन्हें 25-25 के चार उपवर्गों में मेधा के अनुसार रखा जाता है, जिससे छात्र-शिक्षक संवाद-संबंधों का यथेष्ट विकास होता है। छात्रों के व्यक्तित्व-निर्माण में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। छात्रों के मेधा-परिक्षण की निरंतरता उनके अन्दर की ज्ञान की ज्योति को जाज्वल्यमान बनाए रखती है। मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं के आयोजन से छात्रों की मेधा का उत्तरोत्तर उन्नयन होता रहता है। छात्रों की मेधा के उन्नायक के रूप में शिक्षकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विद्यालय के सभी शिक्षक उच्च उपाधि प्राप्तकर्ता हैं और शायद ही कोई ऐसा माध्यमिक विद्यालय हो, जहाँ ऐसे विषय-शिक्षक हों, जो अपने-अपने विषय में न्यूनतम स्नातकोत्तर तथा विशिष्ट उपलब्धि वाले हो। उनकी योग्यताएँ भी उच्चस्तरीय हैं। स्टाफ रूम के अलावे हरेक शिक्षक को अपना अलग-अलग प्रकोष्ठ मिलता है और साथ ही उनके पढाने के कक्ष भी नियत होते हैं। ये प्रकोष्ठ उन कक्षों से सटे होते हैं। ये कक्ष preparatory room की तरह उपयोग में लाए जाते हैं। शिक्षक कक्षा लेने से पूर्व कुछ देखकर या पूर्व तैयारी करने के उद्देश्य से इसका उपयोग करते हैं। छात्रों के गृहकार्य की वे यहीं जाँच करते हैं और छात्रों की प्रगति का मूल्यांकन एवं अन्य शिक्षोपयोगी उपकरणों को रखने के लिए शिक्षक प्रकोष्ठ का उपयोग करते हैं।
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