Saturday 10 January 2009

प्रमुख सर्जनात्मक परम्पराएँ

आश्रम व्यवस्था या अन्य प्रकार की व्यवस्थाएं विद्यालय की आत्मिक परम्पराएँ हैं, पर उस आत्मा के संवर्द्धन के लिए रचनात्मक या प्रयोगधर्मिता उतनी ही आवश्यक है। उसी क्रम में हम यहाँ पर विभिन्न परम्पराओं पर दृष्टिपात करते हुए आगे बढ़ेंगे :
सांस्कृतिक कार्यक्रम :
संस्कृति किसी भी देश की पहचान होती है। लोगों का रहन-सहन, आहार-व्यवहार, क्रिया-कलाप उनकी संस्कृति का निर्माण करते हैं। संक्षेप में, संस्कृति जीवन के विभिन्न आयामों को प्रतिबिंबित करती है और जब बात नेतरहाट विद्यालय की हो तो निश्चय ही अनूठी होगी। नेतरहाट में प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से कुछ प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं, यथा- हिन्दी एवं अंग्रेजी नाटक प्रतियोगिता, लोकगीत प्रतियोगिता। ये प्रतियोगिताएँ जीवन की रंजक गतिशीलता की द्योतक हैं। आश्रमवर्ग स्तर पर आयोजित होने वाली ये प्रतियोगिताएँ छात्रों की प्रतियोगिताएँ छात्रों की प्रतिभा का संवर्द्धन करती हैं, क्योंकि अपनी प्रस्तुति के चयन, निर्देशन, प्रस्तुत करने की शैली, अभ्यास, परिकल्पना एवं अन्य विशेषताएँ छात्रों के द्वारा ही होती हैं। ये सांस्कृतिक कार्यकर्म हमारी समृद्ध संस्कृति के द्योतक हैं। स्वस्थ एवं अच्छी प्रतिस्पर्द्धा के लिए विजेता आश्रमवर्ग को सहभोज भी दिए जाने की परम्परा रही है। 'सहभोज' अर्थात् साथ बैठकर करनाऔर इसका आनंद वर्णनातीत है, विशेषकर छात्रों का रुझान इस ओर काफी ज्यादा होता है क्योंकि इसमे विशेष तौर पर तैयार व्यंजन परोसे जाते हैं। अन्त्याक्षरी भी हमारा प्रमुख साहित्यिक, सासंकृतिक कार्यक्रम है एवं हमारे विद्यालय के वातावरण को रसमय बनाने में सांस्कृतिक कार्यकमों का विशिष्ट योगदान है।

अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता :
अन्त्याक्षरी हमारे विद्यालय की एक विशिष्ट परम्परा है। यहाँ की कुछ चीजें, जो यहाँ के छात्रों को सदा स्मरण रहती है, उनमें पैदा करती, गुदगुदाती हैं, उनमें अन्त्याक्षरी भी एक है। कविताओं के लयबद्ध ओजपूर्ण पाठ से भाव-विभोर कर देने वाली यह प्रतियोगिता अविस्मरनीय है, चाहे वे मधुशाला की मंत्रमुग्ध कर देने वाली पंक्तियाँ हो, चाहे परमानंद का संचरण करने वाली 'रागिनी हूँ.....' हो या 'ओज और उत्साह' से भर देने वाले रश्मिरथी के छंद, सबका अलग-अलग आकर्षण है। मानस, कामायनी, भारत-भारती, उर्वशी, हुंकार या फिर निराला, अज्ञेय, पन्त, मुक्तिबोध के छंदों की भावधारा एक अलग ही संसार की सृष्टि करती है। आज भी हमारे पूर्ववर्त्ती अग्रजों का अन्त्याक्षरी के प्रति विशेष योगदान उल्लेखनीय है।
यह अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता मुख्यतः अन्तरवर्षीय स्तर पर आयोजित होती है।

नाटक प्रतियोगिता :
प्रतिवर्ष होने वाली हिन्दी और अंगेरजी नाटक प्रतियोगिता का आयोजन हमारी रचना-धर्मिता को उभरता है। प्रत्येक वर्ष विद्यालय स्तर पर मंचित होने वाले नाटकों के अलावे अन्तराश्रमवर्गीय नाटक प्रतियोगिता के अंतर्गत सात हिन्दी एवं सात अंग्रेजी नाटकों का मंचन, उनके आयोजन की व्यवस्था, अभिनय की तैयारी व् परिणामों के प्रति उत्सुकता हमारे क्रियाकलाप का एक अभिन्न अंग है। नाटक के आयोजन के समय मंच-सज्जा, रूप-सज्जा एवं प्रकाश व्यवस्था आदि कार्य छात्रों के द्वारा ही किए जाते हैं। इस क्रम में सम्बंधित आश्रमाध्यक्ष छात्रों का निर्देशन करते हैं। वहीँ 15 नवम्बर को होने वाले विद्यालय नाटकों का स्तर और भी उत्कृष्ट रहता है। अब तक मंचित नाटकों में ध्रुवस्वामिनी, दीपदान, सम्राट कनिष्क, कृपाण की धार, मर्यादा की वेदी पर, कोणार्क, कफ़न, हवालात, बकरी, कौमुदी महोत्सव, भगवदज्जुकम आदि प्रमुख हैं।

दिवस/समारोह :
इनके अतिरिक्त वर्षभर विभिन्न जयंतियों एवं दिवसों का भी आयोजन किया जाता रहा है। गांधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, अम्बेदकर, राधाकृष्णन (शिक्षक दिवस) आदि का भी वार्षिक आयोजन हमारी परम्पराओं में शामिल रहा है इसके अलावे हिन्दी विभाग के तत्त्वाधान में तुलसी, दिनकर आदि की जयंतियों को मानाने के साथ-साथ हिन्दी दिवस आदि के द्वारा मातृभाषा के प्रति श्रद्धा भी निवेदित की जाती है। दिवस और जयंतियों के अलावे विभिन्न सेमिनार, वाद-विवाद, भाषण आदि प्रतियोगिताओं का भी वार्षिक आयोजन होता है।

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