Saturday 3 January 2009

स्थापना के उद्देश्य

किसी भी संस्थान की स्थापना के पूर्व ही उसके उद्देश्यों, कर्तव्य आदि को सुनिश्चित कर लिया जाता है। ये ही ऐसे प्रतिमान हैं, जिनसे संस्था की पहचान होती है।
नेतरहाट विद्यालय की स्थापना के पीछे एक ऐसे मंच की रचना करने का उद्देश्य था, जिस पर वर्गभेद, जातिभेद, सम्प्रदायभेद से ऊपर उठकर मेधावी और प्रगतिशील बच्चों को जनतांत्रिक मूल्यों के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में विकसित किया जाए। शिक्षा का उद्देश्य किसी भी काल में या तो समाज की आवश्यकता के अनुसार निर्धारित किया जाता है या शिक्षा को लागू करने वालों के हितों के अनुरूप। सामाजिक और नैतिक मूल्यों से संपन्न ऐसे तेजस्वी, मेधावी होनहारों-कर्णधारों की जरुरत थी, जो आधुनिक परिवेश की पूरी जानकारी रखें और भारत की प्रकृति के अनुरूप विकास को एक बहुआयामी गति प्रदान करें। इन सभी उद्देश्यों को लेकर तथा शिक्षा के मानक आदर्शों को ध्यान में रखकर एक आदर्श विद्यालय की स्थापना की गयी। राज्य के व्यय से सभी वर्ग, आयवर्ग के मेधावी छात्रों को एक ऐसा माहौल प्रदान किया जाए, जो राष्ट्र के विकास में उनकी अनमोल भागीदारी सुनिश्चित करे। इस विद्यालय की स्थापना में 'गुरुकुल संस्कृति', 'बुनियादी शिक्षा' एवं पब्लिक स्कूलों की उपयुक्त विशेषताओं को भी अंगीकार किया।
विद्यालय के विभिन्न तत्त्वों सार को लेते हुए सम्पूर्ण परिकल्पना में श्री एफ. जी. पियर्स ने उद्देश्यों को प्राप्त करने के विषय में कहा था- "छात्रों में सामाजिकता, स्वावलंबन एवं आपसी सहयोग का विकास इस प्रकार की उन्नत व्ययस्था में काफ़ी सरलता से सम्भव है। छात्रों में इससे कौशल और उत्पादकता (परिणाम के सन्दर्भ में) का स्तर बढ़ेगा। यह विद्यालय सामान्य विद्यालयों की तरह 'By fit & start' नहीं चलाया जा सकता है। इसमे छात्रों के लिए 'Go-on' के बदले 'Come-on' के उत्साहवर्द्धक तरीके पर जोर दिया जाए। विद्यालय की परिकल्पना में फलीभूत होने वाले उद्देश्यों में संज्ञेय उद्देश्य तो मेधा का उन्नयन(Promotion of Excellence) है ही, लेकिन असंज्ञेय उद्देश्यों में स्वावलंबन, सहयोगिता, पर-दुःखकातरता, कर्तव्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व, पहल करने की क्षमता, कार्यकुशलता के विभिन्न आयाम हैं। कुल मिलाकर इस विद्यालय का दृष्टिक्षेत्र काफी व्यापक, भव्य और दिव्य है।
यहाँ की स्थापना के उद्देश्यों में विभिन्न परम्पराओं के द्वारा छात्रों के संस्कार एवं सम्यक् चरित्रनिर्माण को भी ध्यान में रखा गया था। यहाँ के आश्रमाध्यक्ष, आश्रममाता की परम्परा भारतीय संस्कृति के 'गुरु, गुरुमाता' के विशाल आदर्शों के अनुरूप है। गुरु से निकटतम एवं घनिष्ठ भावनात्मक सम्बन्ध नेतरहाट विद्यालय की श्रेष्ठ पहचान रही है। समस्त नेतरहाट को एक विशिष्ट 'मातृसत्ता' के रूप में स्थापित करना नेतरहाट विद्यालय की भावनात्मक विशेषता है। 'श्रीमानजी', 'माताजी' के गरिमामय संबोधन से 'नाईजी, धोबीजी, मोचीजी' का अपनत्व भरा संबोधन छात्रों का सम्यक् विकास करता है। 'नमस्ते' की मुद्रा में जुड़े छात्रों के हाथ आज भी भारतवर्ष की प्राचीन संस्कृति का स्मरण कराकर हमें गर्वोन्नत कर देते हैं। मौनवेला का गुंजित मंत्रोच्चारण एवं तदुपरांत मौन गहन आत्मचिंतन भी छात्रों के आतंरिक व बाह्य संस्कारों की पुष्टि करता है।

स्थापना के उद्देश्यों में सहायक वित्तीय व्यवस्था:
स्थापना
के उद्देश्यों की पूर्ति में वित्त का भी समायोजन काफी महत्त्व रखता हैअतएव प्रस्तावित विद्यालय की वित्तीय व्यवस्था, शुल्क-ढाँचे, इत्यादि को जनसाधारण की पहुँच के अन्दर रखने की बात थीकाजमी रिपोर्ट में प्रस्तावित विशाल बजट की पूर्ति के लिए एक बड़ी धनराशि छात्रों के अभिभावकों से यदि ली जाए, तो यह गरीब छात्रों के लिए सिर्फ़ एक सपना ही रह जायेगाऔर यह विद्यालय के उद्देश्यों के साथ मजाक होगाइसलिए छात्रों के नामांकन का आधार मेधा रखा गया कि धनइस प्रकार की शिक्षा के लिए सिर्फ़ उन छात्रों को ही नहीं रखा गया, जो इसके लिए कुछ दे सकते हैं, सक्षम हैं, बल्कि गरीबों का भी ध्यान रखा गया था
छात्रों पर शिक्षा, आवास, भोजन, वस्त्रादि पर होने वाले व्यय का बहुत ही कम अंश छात्रों के अभिभावकों से लिए जाने का प्रावधान किया गयाछात्रों को आरम्भ में छः वर्गों में बाँटा गया था, लेकिन वर्तमान में चार वर्ग ही हैंगरीब छात्रों के सारे व्यय का वहन सरकार ही करती हैवहीँ धनी परिवार के बच्चों से भी नाम-मात्र के शुल्क का ही प्रावधान है
विभिन्न तथ्यों के आधार पर यह विद्यालय निम्न आधारों पर अन्य पब्लिक स्कूलों से भिन्न है:-
() इस विद्यालय में नामांकन का आधार मेधा है कि अभिभावकों की आय
() छात्रावास सामान्य छात्रावासों की तरह होकर पूर्ण भारतीय परिवेश में हैंयह गुरुकुल परम्परा पर आधारित हैंछात्रावास 'आश्रम' कहलाते हैं, जहाँ छात्रों की संख्या सीमित है (20 के लगभग)। इससे निम्न उद्देश्यों की आकांक्षा की पूर्ति में मदद मिलती है-
()छोटे स्तर पर छात्रों को उभरने का पर्याप्त अवसर मिलता है
()शिक्षकों (आश्रमाध्यक्षों) एवं आश्रमामाताओं तथा छात्रों में पारिवारिक समझ विकसित होती है जो छात्रों के समेकित विकास में सहायक है
() शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हिन्दी है, लेकिन उन्हें अंग्रेजी में भी श्रेष्ठ बनने की शिक्षा दी जाती है

1 comment:

  1. Dear Brother,
    Nothing could be better than the write-up on Netarhat school you have given.It is the most suitable expression of the principles and ideals on which our school was established.
    Congratulations!
    Narendra Nath Pandey 1957-63
    Retired Univ. Prof. of Physics, Patna Univ.

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